रंग दे बसंती चोला
रंग दे बसंती चोला


राजगुरू सुखदेव भगत ने
देशभक्ति नशा सब में था घोला।
जिनकी प्रेरणा ने था रंग डाला
बसंती रंग में सबका का चोला।
तीस मार्च की तिथि तय की थी
फांसी पर तीनों शेर चढ़ाने की।
पर गोरों की रूह लगी कांपने जो
आशंका थी बगावत के हो जाने की।
एक घृणित चाल चल दी थी गोरों ने
पर राज नहीं था बिल्कुल भी खोला।
रंग दिया बसंती रंग में मगर सपूतों ने
भारत माता के सब भक्तों का चोला।
भारत मां के इन सिंहों ने जन-जन के
दिल में चिंगारी क्रांति की भड़काई थी।
करके महसूस जनाक्रोश जनमानस का
मन ही मन में सरकार गोरी थर्राई थी।
फांसी एक हफ्ते पहले तेईस को ही
देने का हुक्म दिया गया था बोला।
भयवश प्रतीक्षा प्रभात की कर न सकी
संध्या को ही बलिदानी फंदा गया था खोला।
फाँसी चढ़ने से पहले खुश होकर के वे
तीनों ही वीर इक दूजे से थे गले मिले।
इंकलाब - जिंदाबाद के गूंजते नारों से
लाहौरी कारागार के सारे ही प्राचीर हिले।
बलिदानी वीरों के बलिदानों से साहस ने
देशभक्तों के ज्ञान चक्षुओं को था खोला।
मां के मतवालों का रोम-रोम तब बोल उठा
"मेरा रंग दे बसंती चोला-मेरा रंग दे बसंती चोला।"