रंग बदलता अनूठा बचपन
रंग बदलता अनूठा बचपन
हुआ आगमन नन्हे शिशु का,
ऑंखें मुंदी, कोमल देह गुलाब पंखुड़ी-सा !
निशि - वासर , मोड़ - विमोद तुल्य सब,
नहीं ज्ञात , कब जागे, सोये कब !
जननी के स्वास का अहसास,
दिल की धड़कनो के पास,
गोद में जब उठाये वह,
मंद - मंद मुस्कान होठों पर लिए,
करता जग का उपहास !
खुले नेत्र !
पहली किरण पड़ी नेत्र पट पर जब,
जान गया वह उस माली को,
जन्मा था जिसने,
उस बचपन -सी डाली को !
पला - बढ़ा तब कमल नाल सा बचपन ,
रंग बदलता , अनूठा बचपन !
मुस्कान वो पहली मुख पर जब छाई,
किलकारी वो पहली अधरों पर जब गाई !
घुटनों के बल ,
सरक - सरक चलना सीखा ,
गिर -पड़ तब संभालना सीखा !
पहली बार जब मुख खोला,
तुतला कर जब "माँ" बोला !
चहल - पहल थी अब माली की बगिया में,
फूल खिला, कच्ची कोंपल वाली डाली में !
अपने - पराये की पहचान,
अब होने लगी है,
वो मासूमियत सी,
अब खोने लगी है !
भोर रूपी बचपन अब दुपहरी में लगा ढलने,
अपनापन अब गैरत में लगा बदलने !
फूलों के संग काटें भी हैं,
पहनी बचपन ने मनुज रुपी अचकन,
रंग बदलता, अनूठा बचपन !