रक्त से ही दीये को जलाने की
रक्त से ही दीये को जलाने की
प्राण की अपने बाती बनाने की
रक्त से ही दीये को जलाने की
भूलकर सब क़सीदे जमाने की
ज़िद हुई आसमां को झुकाने की
आईना हूँ मुझे है पता अपना
ताकतें हैं सभी सच दिखाने की
जब निज़ामत खुदा की यहाँ तेरे
अब जरूरत नहीं सर झुकाने की
इक दिये से ज़याबार थी दुनिया
क्या जरूरत दिलों को जलाने की
हैं सज़ी गाँव की हर गली मेरे
जब ख़बर हैं मिली उनके आने की
हाल दिल कोई सुनता नहीं मेरा
हैं जरूरत ग़ज़ल गुनगुनाने की
बेवफ़ा हैं धरम अब जहाँ सारा
सोचना मत यहाँ दिल लगाने की