रहते हैं समाज में भी अघोरी
रहते हैं समाज में भी अघोरी
रहते हैं समाज में भी अघोरी से लोग।
उन्हें सिखाया जाता है अघोर- किसी बात से न डरना।
चाहे सामने कोई डराने आए,
मुस्कुराते रहना।
चाहे जलती चिता के पास खड़े हो,
अपना काम करते रहना।
कभी जाना पड़े मल मूत्र से सने व्यक्ति के पास,
घिन न करना, रखना में दिमाग में अपना लक्ष्य सिर्फ।
ज़रूरत पड़ने पर शव का भोग लगा लेना।
श्मशान में भी मिले जो सिद्धि - ले लेना।
इतना ज़रूर है कि वे लोग खुद को काल भैरव नहीं कहते,
वे खुद को कहते हैं
मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव।
किसी अघोरी से भी ज़्यादा आगे,
वे समाज के हर हिस्से, हर तबके को छू लेने का साहस रखते हैं।
ताकि टारगेट पूरा हो सके।