राज़
राज़
ज़ुबान पे आते,
ज़िक्र नहीं कर पाते,
मन में मचलते रहते,
ज़ाहिर नहीं कर पाते,
खूबियाँ लगती है, बड़ी खास।
इच्छाएं बनी रहती, बस एक राज़।।
हैसलों के सपने आते,
हकीक़त नहीं बन पाते,
जीगर में आग सी पनपती,
लेकिन कुछ नहीं कर पाते,
मुकाम हासिल करना है,
यह शब्द करते मन में वास।
ठिठुर जाते, कुछ कदम चलते ही,
रहता है, बस थमा हुआ एक राज़।।
सुपर वुमन सुना तो था,
हकीक़त में ऐसा कुछ न था,
इच्छाएं तो खूब थी,
बस इनपे काबू रखना पड़ता था,
विचार आता, बहुत कुछ बदल जाए काश।
सुबह होते ही सिमटा हुआ रह जाता,
बनकर यह बस एक राज़।।
जीवन के यह दिन ऐसे ही निकल जाते,
और हम यू ही, सपनों को अपने मन मे पाते,
वक्त आता जब अपना वर चुनने का,
वहां भी अपने देश भारत में नहीं रह पाते,
इतना वक्त बीत गया इस निवास में,
सिलसिला चलता गया,
कभी महसूस ही नहीं हुआ,
क्या हम रहते थे भारत आवास में,
जाने अनजाने कैसा यह चमत्कार हुआ,
फागुन महीने का पहली बार एहसास हुआ,
कुछ तो आया बदल,
सपनों को अब साकार करना है,
यह मौसम लाया है, हसीन लम्हे,
ज़िन्दगी जीने की दिशा अब बदलना है,
थे जो भी मन के भीतर छिपे ख़्वाब आज।
स्वीकार होंगे सब, मिट जायेंगे सारे राज़।।
