मेरे बाबा
मेरे बाबा
मेरे बचपन की यादे,
मुझे याद आई,
बाबा के साथ मेरी,
वो शरारतें खिलकर छाई।
मेरी शरारती माँगो को,
बाबा का ठुकराना,
और मेरा,नाराज़ होकर,
कम्बल के अंदर चले जाना।
अंदर से फूस-फूसी सी,
रोने की आवाज़ आना,
सिर पर मेरे, हाथ रखकर,
बाबा का मुझे सहराना।
बाबा का मुझसे,
एक पल में रूठना,
दूसरे ही पल मुझे
फिर से मुस्कुराकर मना लेना।
नहीं आ पाता जल्द,
मुझमे कोई बदलाव,
थोड़ी सख्ती,थोड़ी नरमी,
जैसे रंगो की तरह,
विभिन्न प्रकार का दिखता,
मेरे बाबा का स्वभाव।
धैर्य से बाबा की बातों का,
मेरे समझ में आना,
और अपनी भावनाओं को,
कैसे भी बाबा तक पहुँचाना।
फिर भी मेरी शरारते,
किसी के बाज़ नहीं आती,
ये सिलसिला है प्यारी यादों का,
बाबा की डाँट,यू ही कायम रहती।
देरी से समझ में आता,
बाबा मुझे बहुत खूब है जानते,
सीख और समझ से,
जल्द ही मेरा परिचय कराते।
न कि बाबा ने कभी,
खुद से कोई शिकायत,
क्योंकि शरारतें ही है,
जो बरकरार रखती,
बचपन की खासियत।