शुभारंभ
शुभारंभ
जिंदगी एक लम्हा है
कोई स्वर्गवास, तो कोई जन्मा है
छोटे-छोटे ये पल,
जिंदगी में रखते बड़ी एहमियत।
इस पल को सिमट लो,
लेकर नेकी की नियत
ये खास लम्हे, ऐसे ही न निकल जाए,
अहंकार की बोला- बोली में
की हम खुश ही न नज़र आए।
वक्त के इस शुभघड़ी में
सब साथ में तो है,
लेकिन दिल नही मानता
कभी-कभी ऐसा महसूस होता है।
जैसे कोई किसी को नही जानता
भागदौड़ के इस वक्त को,
बनाए ऐसा शानदार
एकत्रित होकर प्रत्येक लोक।
हो इस प्रिय लम्हे के भागीदार
कभी-कभी छोटी सी चूक,
किसी न किसी से हो जाती है
एक मुस्कान ही तो है,
जो इसे मोह लेती, नज़र आती है।
देखते प्रत्येक लोक स्वप्न,
आशाएं हो जल्द प्रारंभ
विनती है सबसे, एक बार सोचकर देखे,
कैसे करना है इसका शुभारंभ।