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Payal Khekde

Abstract

5.0  

Payal Khekde

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पालकजन

पालकजन

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न कर पाते पालकजन,

बच्चों के ख्वाहिशों को मना।

और पता भी न चलता,

कब कर देते बच्चे,

उनकी जीवन रचना।


नन्हा बच्चा जन्म लेकर,

खूब लाड़-दुलार से होता बड़ा।

आता जब वक्त सेवा का,

होता कर्त्तव्यों के विरुद्ध खड़ा।


होता कष्ट पालकजन को,

दिखने न देते अपने आँसू।

फिर भी रहती एक उम्मीद,

कैसे इस परिवार को झाँसू।


ज़रूरत नहीं यार की,

चाहत है थोड़े से प्यार की,

क्योंकि मिलता नहीं ऐसा सौभाग्य।

कुछ तड़पते हैं, पाने को ऐसा भाग्य।


सामने है सब स्पष्ट-स्पष्ट,

कैसी बदलती यह बुद्धि।

दिखते नहीं पालकजन के कष्ट,

ईश्वर दे उन्हें थोड़ी सद्बुध्दि।


होता प्राप्त, प्रिय प्रेम

भेट स्वीकार यह सप्रेम।

ख्वाहिश है पाने की जन्न्त

खुशियां,प्यार, रहे पालकजन साथ,

ईश्वर पूरी करे, ऐसी मन्नत।


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