लॉर्ड गणेशा
लॉर्ड गणेशा
ज़ोर-शोर से स्वागत मेरा,
जैसे हो कोई जश्न।
आया हूँ मैं धरती पे,
हरने सबके विघ्न।।
आते ही भयानक था,
रूप वातावरण का,
देखनी थी मुझे,
चारो ओर हरियाली।
मनचाहा न मिला कुछ,
क्योंकि बदल गई धरती पर,
लोगो की जीवनशैली।।
आनंद लेना था,
मुझे स्वस्त वायु में।
है नज़ारा कुछ और ही,
कम होते दिखते पेड़ आयु में।।
कई प्रसंग देखने मिले,
मिला अमीर को वी.आई.पी पास।
स्वभाग्य से दर्शन मिले,
ऐसी रहती एक गरीब को आस।।
भोग में मेरे कई स्वादिष्ट व्यंजन,
प्रतिदिन बढ़ता मेरा शान।
फिर क्यों विसर्जन के वक्त,
प्रदूषित पानी में होता मेरा स्नान।।
है उल्लास सा माहौल,
भजन में है मेरे गान।
वास करता हु मैं भक्ति में,
बनावट नही मेरी पेहचान।।
जिसने हमे आकार दिया,
मेरी माँ है यह मिट्टी।
उत्पन्न की है जिसने,
यह पूरी हर्षित सृष्टि।।
फिर भी क्यों है,
मेरे बनावट को लेकर,
यह मानसिक तनाव।
क्योंकि भक्ति में नही,
किसी प्रकार का कोई भेदभाव।।
कैसी यह चमक,
इन रसायनिक पदार्थो की,
जिससे प्रदूषित है पवित्र गंगाजल।
मिट्टी का वेश प्रिय है मुझे,
अगले साल, मेरे आगमन पे रखे अविचल।।