राज़ छुपाये
राज़ छुपाये
दिल मे कई राज
छुपाये बेठा हूँ
हो सके तो समझ लेना
एक अनसुलझी शिकायत
सुलझाये बैठा हूँ
क़शिशों के मंजर मे सैर करती मन की नाव
इस झील को गुलशन
से सजाये बैठा हूँ
ज़ज़्बातों का तूफान हैं
कभी विरान है
कभी अंजान है
पढ लो तुम सुकून से के
उन्हे जलाये बैठा हूँ
हर धडकन मे ही गुजरता है
ख्याल आपका
इन धडकनो की
एक गजल सुनाये बैठा हूँ
दिल में अपने कई राज़ छुपाये बैठा हूँ