रामायण-७ ;राजा प्रतापभानु का शाप
रामायण-७ ;राजा प्रतापभानु का शाप
सत्यकेतु नाम का था एक राजा
कैकय देश में उसका भवन
दो पुत्र प्रतापी उसके
प्रतापभानु और अरिमर्दन।
प्रतापभानु को राज्य देकर
राजा चले गए वन में
अब दोनों भाई राज्य चलाएं
आया था उन के मन में।
बुद्धिमान मंत्री था उनका
धरमरुचि था उसका नाम
चतुरंगिणी सेना थी उनकी और
धर्म का भी था उनको ज्ञान।
राज्य जीते प्रतापभानु ने
बहुत यज्ञ भी उसने किये
एक दिन शिकार करने को
घोड़े पर थे निकल गए।
विंध्याचल के घने जंगलों में
हिरणों का था किया शिकार
मोटा सूअर तब एक था दिखा
तीरों से किया उस पर वार।
एक गुफा में घुस गया सूअर
वो हो गए थे बहुत हताश
रास्ता थे वो भटक गए और
उन को लगी थी भूख और प्यास।
तभी दिखा एक आश्रम सुंदर
मुनि थे उसमें बैठे एक
वेश बदल बैठा एक कपटी
मुनि वेश में लगता नेक।
असल में ये एक राजा था
जिसे प्रतापभानु ने हराया
मन में उसके द्वेष भरा था
उसीने था प्रपञ्च रचाया।
प्रतापभानु को पहचाना उसने
पर अपना पता न लगने दिया
मुनि ने ज्ञान की बातें करके
विश्वास राजा का जीत लिया।
मुनि कहा, एक उपाय बताऊँ
राज करो तुम सौ कलप तक
राजा सोचें सिद्ध मुनि हैं
उनको हुआ न उसपर शक।
मुनि बोले तुम्हे एक क्षण में
महल में घोड़े सहित पहुंचाऊं
पुरोहित को में तेरे हरण करूँ
फिर पुरोहित मैं बन के आऊं।
ब्राह्मणों को वश में करने हेतु
तुम परोसो, मैं खाना बनाता
इस विधि से ही ये सब होगा
तीन दिन में मैं हूँ आता।
जब थक कर राजा था सो गया
कालनेमि राक्षस वहां आया
मुनि से वो भी मिला हुआ था
सूअर भी थी उसकी माया।
राजा को छोड़ा राजमहल में
गुफा में पुरोहित को ले आया
खुद पुरोहित के वेश में पहुंचा
राजा कुछ भी समझ न पाया।
ब्राह्मण मांस पकाए पुरोहित(कालनेमि)
राजा को पता ना लग पाया
लाखों ब्राह्मण भोज में आए
सबको वो परोस था आया।
तभी आकाशवाणी हुई कि
खाने में है मांस पकाया
ब्राह्मणों ने दिया शाप राजा को
राजा को कुछ समझ न आया।
रसोई देखी तो पुरोहित गायब
उड़ गए थे राजा के होश
आकाशवाणी फिर से हुई
कोई नही राजा का दोष।
एक बरस के भीतर नाश हो
ब्राह्मणों ने ये शाप दिया
परिवार सहित तुम बनोगे राक्षस
राजा ने सब स्वीकार किया।
कपटी मुनि और राक्षस ने फिर
और राजाओं को मिलाया
चढ़ाई कर दी उसके राज्य पर
सबको मौत के घाट सुलाया।
प्रतापभानु फिर बना था रावण
अरिमर्दन बना कुम्भकर्ण
परिवार बना साथी और सेवक
धरमरुचि बना भाई विभीषण।
