रामायण ५९ ;संत असंत का भेद
रामायण ५९ ;संत असंत का भेद
भरत जी पूछें रघुनाथ से
संत असंत में भेद क्या है
राम बोलें कि संत असंत ये
चन्दन, कुल्हाड़ी की तरह हैं।
कुल्हाड़ी वृक्षों को काटे
चन्दन गुण है अपना देता
जो कुल्हाड़ी उसे काटती
सुगंध से उसको भी भर देता।
इसी लिए चन्दन को हम सब
देवताओं पर हैं चढ़ाते
कुल्हाड़ी को पीटें लोहे से
आग में हम उसको जलाते।
संत स्वभाव से शीतल हों और
सद्गुणों की खान होते हैं
पराये सुख से वो हर्षित हों
पराये दुःख में वो रोते हैं।
उनके लिए कोई शत्रु नही
मद रहित, वो वैराग्यवान हैं
लोभ, क्रोध, हर्ष और भय का
त्याग करके वो बने महान हैं।
चित कोमल, दीनों पर दया करें
प्रभु की निष्कंटक करें भक्ति
खुद मानरहित, सम्मान करें सबका
ये गुन सारे देते उन्हें शक्ति।
कामना उनकी कभी कोई न
निर्मल और प्रसन्न उनका मन
जिसके ह्रदय में ये लक्षण हों
उसे तुम जानो संत जन।
नियम निति से कभी विचलित नहीं
निंदा स्तुति दोनों समान हैं
बोलें कभी कठोर वचन ना
मुझको प्यारे, जैसे मेरे प्राण हैं।
अब सुनो स्वभाव असंतों का
संग उनकेकभी न जाना तुम
सदा तुम्हे दुःख देंगे वो
उनकी बातों में न आना तुम।
ह्रदय में उनके संताप है रहता
सुख पराया देख जलते हैं
दूसरे की निंदा कर हर्षित
मन के कुटिल बहुत होते हैं।
काम, क्रोध, मद, लोभ भरा हुआ
निर्दयी, कपटी और पापी वो
भलाई भी जो कोई करे उनसे
बुराई उसके साथ करें वो।
ऊपर से भोले लगें वो
ह्रदय से बहुत निर्दयी होते हैं
नजर रखें वो पराये धन पर
दूसरों के द्रोही होते हैं।
रहें आसक्त परायी निंदा में
राक्षस समझो, वो मनुष्य ना
लोभ औढनी, लोभ बिछोना
अच्छा लगे संतों का संग ना।
मात पिता गुरु और ब्राह्मण
किसी को भी न वो मानें हैं
क्रोध उनमें बस भरा पड़ा है
अपने को ही ज्ञानी जाने हैं।
आप तो नष्ट वो होते ही हैं
दूसरों को भी नष्ट करें वो
हरि कथा कभी नहीं सुनते
पशुओं की भांति बस पेट भरें वो।
अवगुणों के हैं वो समुन्द्र
मंदबुद्धि, कामी होते हैं
जबरदस्ती वो सबसे करके
पराये धन के स्वामी होते हैं।
सतयुग और त्रेता में होते नहीं
द्वापर में थोड़े होते हैं
झुण्ड के झुण्ड हों कलयुग में वो
संतों पर हावी होते हैं।
भलाई अगर दूजे की करो तुम
इससे बड़ा कोई धर्म नहीं
दूजे को जो दुःख पहुंचाओ
इससे बड़ा कोई पाप कर्म नहीं।
संत असंत के गुणों को सुनकर
हर्षित हुए थे तीनों भाई
हनुमान विशेष प्रसन्न हुए
प्रभु की वो तब करें बड़ाई।
नित नयी लीला प्रभु करते
नारद आते रोज वहां पर
ब्रह्मलोक जाकर बतलाएं
अयोध्या के सब राम चरित्र।
राम प्रणाम करके गुरु को
उपदेश देते सब नर नारिओं को
प्रजा प्रेम से सुने और उन्हें
मात पिता गुरु भाई मानें वो।
मुनि वशिष्ठ जी परम ज्ञानी हैं
पारब्रह्म हैं राम, वो जानें
चरणकमलों का प्रेम वो मांगें
अपना सब कुछ उनको मानें।
