रामायण ५७ ;राम का राज्याभिषेक
रामायण ५७ ;राम का राज्याभिषेक
मुनि कहें अति सुबह घडी ये
दिन भी सुंदर, योग भी शुभ
बिलम्ब न करो, सिंहासन पर
राम बिराजमान हों अब।
मुनि बुलाया सुमंत्र को कहा
राजतिलक की करो तैयारी
अयोध्या नगरी सुंदर सज गयी
लोगों में हर्ष था भारी।
राम ने भरत को था बुलाया
हाथों से जटा सुलझाएं
फिर अपनी जटा भी खोली
स्नान किया, आभूषण आये।
शोभित जानकी बायीं और हैं
दिव्य सिंहासन पर विराजें
मुनि वशिष्ठ तिलक करें उनको
शहनाई, नगाड़े बाजें।
स्तुति देवता करें वहां पर
भाटों के रूप में वेद हैं आये
गुणगान करें वो रामचंद्र का
फिर ब्रह्मलोक में जाएं।
शिवशंकर आये दर्शन करने
वो भी करें स्तुति वहां पर
आशीर्वाद दे चले गए वो
कैलाश धाम उनका जहाँ पर।
नित्य नए मंगल हों अवध में
वानर वहां से ना जाना चाहें
छे महीने बीत चले पर
घर की याद न उनको आये।
राम ने उनको बुलाया और कहा
प्यार दिया मुझे इतना सारा
मुँह पर मैं क्या करूं बड़ाई
तुमसे ज्यादा मुझे कोई न प्यारा।
अब तुम सब वापिस घर जाओ
सुनकर ये सब हाथ जोड़े खड़े
देखें प्रभु को, कुछ न बोलें
प्रभु दिए उन्हें गहने और कपडे।
अंगद उठकर बचन ये बोले
ना कोई मेरा सिवा आपके
मरते हुए मेर पिता ने
गोद में डाला मुझे आपके।
छोड़ के जाऊं आप को कैसे
राम ने ह्रदय से उसे लगाया
फिर उसको विदा कर दिया
मान गया वो, जब समझाया।
हनुमान कहें सुग्रीव से
करें विनती, मैं यहीं रहूंगा
कुछ दिन बाद यहाँ से जाऊं
प्रभु राम की सेवा करूंगा।
अंगद तब कहें हनुमान से
मेरी याद दिलाते रहना
तुम तो साथ प्रभु के होगे
हमारी भी कुछ उनसे कहना।
निषादराज को तब बुलाया
प्रभु कहें अब तुम भी जाओ
ह्रदय से उसे लगाकर ये कहा
अचल भक्ति तुम मेरी पाओ।
