रामायण ५६ ;अयोध्या में आगमन
रामायण ५६ ;अयोध्या में आगमन
वनवास की अवधि पूरी हो गयी
राम लौटें एक दिन के अंदर
आतुर बहुत नगरवासी सब
शकुन हो रहे बहुत ही सुंदर।
भरत का मन विरह समुन्द्र में
उसी समय हनुमान जी आये
ब्राह्मण रूप धरा था उन्होंने
भरत को सब समाचार सुनाएं।
जिसके विरह में रहते हैं रात दिन
वो राम जी सकुशल आ गए
सुन के आँख से आंसू गिर रहे
ब्राह्मण उनको थे भा गए।
भरत उनको पहचान न सके
हनुमान ने अपना नाम बताया
गले लगाकर मिले और पूछें
राम को क्या कभी याद मैं आया।
कहें कपि, तुम प्राण राम के
प्रेम विह्वल हुए भरत जी
रामचंद्र की जय बोलकर
वापिस राम के पास आये वहीँ।
भरत का हाल सुना जब राम ने
हर्षित हो विमान पर चले
भरत जी अयोध्या पुरी में आये
गुरु वशिष्ठ से वो थे मिले।
बात माताओं के पास भी पहुंची
सबकी सब थीं हर्षित मन में
नगरवासिओं ने भी सुना
बात पहुँच गयी जन जन में।
विमान से अयोध्या को दिखलाया
सुग्रीव, अंगद, विभीषण को
कहें, जन्मभूमि ये मेरी
प्रणाम करें सभी, साथ में जो।
सब लोगों को आते देखकर
विमान उतारा नगर के पास
राम ने कहा पुष्पक विमान को
अब जाओ कुबेर के पास।
गुरु वशिष्ठ के चरण थे पकडे
भरत जी उनके चरण पड़े
चारों भाई मिले आपस में
अयोध्यावासी प्रसन्न खड़े।
असंख्य रूप बनाये राम ने
पर किसी को पता न चला
पल में सब लोगों से मिल लिए
सब सोचें मैं उन्हें मिला।
सखाओं को गुरूजी से मिलाया
माताएं भी मिलीं सभी
चले महल को, नगर सजा था
सुंदरता देखि न कभी।
अटारिओं पर सब चढ़े हुए थे
दर्शन को आतुर थे वो
बोल रहे थे एक ही सुर में
रामचंद्र जी की जय हो।
कैकेई लज्ज़ती सकुचाती
रामचंद्र उन्हें समझाएं
गुरु वशिष्ठ ब्राह्मणों को बुलाया
सभी प्रसन्नचित हो आये।
