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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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रामायण ४० ;राम विभीषण मिलाप

रामायण ४० ;राम विभीषण मिलाप

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रावण सलाह मांगे मंत्रिओं से

गुणगान करें वो रावण का

देवताओं को आपने जीता

डर क्या मनुष्य और वानर का


मंत्री, वैद्य, गुरु ये तीनों को

भय हो या हो लाभ की आस

हित की बात करें ना, तो हो

राज्य, शरीर, धर्म का नाश।


रावण के हित की बात करी थी

जब वहां विभीषण आये

काम, क्रोध, मद, लोभ ये सारे 

नरक की तरफ हैं ले जाएं।


राम चराचर के हैं स्वामी

जानकी वापिस दे दो अब

मुनि पुल्सत्य भी यही कहें हैं

जो मैंने तुमसे कहा है सब।


माल्यवान मंत्री रावण का

बुद्धिमान ज्ञानी बड़ा

वो भी विभीषण से सहमत था

समझाए रावण को खड़ा।


रावण बोले, ये मूर्ख दोनों 

शत्रु की महिमा का करें बखान

दूर करो इनको नहीं तो

ले लूँगा इनके मैं प्राण।


माल्यवान चला गया घर

विभीषण अब भी हैं समझाएं

कुबुद्धि आपके ह्रदय में आई

अपने हित के लिए ही मान जाएं।


रावण को क्रोध आ गया

विभीषण को लात थी मारी

कहा शत्रु के साथ तू जा मिल

उनको ही शिक्षा दे सारी।


विभीषण कहें मुझे दोष न देना

राम के पास मैं जाऊं अब

विभीषण के चले जाने से राक्षस

आयुहीन हो गए थे सब।


रावण भी ऐश्वर्य हीन हुआ

जब रघुनाथ के पास चले विभीषण

प्रभु चरणों के दर्शन होंगे

सोच के ही, हुआ पुलकित मन।


समुन्द्र पार विभीषण आ गए

वानर सोचें, दूत कोई है ख़ास

सुग्रीव के पास गए सब वानर

वो गए फिर राम के पास।


सुग्रीव बोले थे रामचंद्र से

रावण का भाई है आया

पूछा राम ने उद्देश्य क्या है

और क्या है वो मन में लाया।


बोलें सुग्रीव, कुटिल ये राक्षस

शायद आया भेद ये लेने

प्रभु बोले ये शरणागत है

न त्यागा है कभी भी मैंने।


दोनों भाइयों को दूर से देखा

स्तब्ध होकर वो देख रहे

आँखों में जल भर आया

विभीषण ये मीठे बचन कहें।


हे नाथ, मैं रावण का भाई

आप का यश मैं सुन कर आया

भयभीत हूँ रक्षा मेरी कीजिये

राम ने ह्रदय से लगाया।


कहा सुनो हे लंकापति

मैंने राज्य ये तुमको दिया

तुम्हारे अंदर गुण बहुत हैं

 राजतिलक विभीषण का किया।


शिव ने रावण को लंका दी

जब दशों सिरों की दी थी बलि

यही सम्पति विभीषण को

राम ने संकुचात्ते हुए दी।


राम पूछें हे लंकापति

समुन्द्र पार अब कैसे जाएं

कहें विभीषण नीति कहे

हम प्रार्थना से समुन्द्र को मनाएं।


लक्ष्मण को ये बात जंची न

कहें करो बाण का वार

समुन्द्र का पानी सूखा दो

सेना जाये समुन्द्र पार।


राम ने लक्ष्मण को समझाया

समुन्द्र के वो पास गए

सिर नवाया, प्रणाम किया

फिर कुशा बैठकर बैठ गए। 



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