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Praveen Gola

Tragedy

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Praveen Gola

Tragedy

राख

राख

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उसको बर्बाद करने की खातिर, हम अपना घर जला बैठे,

नफरत ~ए ~आग बुझाने की खातिर, कितनी राख उड़ा बैठे ?

यूँ तो कई सालों से संभाला था, उसके दिल ~ए ~जज़बात का नजराना,

पर दूरियाँ और बढ़ती गईं .....और हम अपने हाथ जला बैठे।

सोचा कई बार लौटा देंगे उसे, जो था ही ना हमारा ....

पर आज भस्म कर सभी कुछ, अपने साथ छुपा बैठे।

खुदाया माफ करना इस गुनाह को, जो नफरत में ऐसे तबदील हुआ,

हर जलती हुई चिंगारी को हम, गले का हार बना बैठे।

उसने पुण्य कमाया जी भर, हम एक पल में पाप के भागीदार बने,

राख - राख हुई चिंगारी सब, हम नम आँखें सुजा बैठे।

मकसद कुछ भी ना था, सच कहूँ जो गर मेरे यार,

बस साथ दफ्न हो ये राज़, खुद को गुनाहगार बना बैठे।


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