राजपूत
राजपूत
राणा का मैं भाला हूं
पन्ना का मैं त्याग हूं
पद्मनी के जौहर से निकला
मैं निडर निर्भीक राजपूत हूं।
शत्रु की मैं छाती चीरूं
रण में खूनी तलवार हूं
गीदड़ों की फौज के लिए
मैं एक सिंह ही काफी हूं।।
सर कटा देते युद्ध भूमि में
झुकना हमें मंजूर नहीं
घास की रोटी खा लेंगे पर
दासता शत्रु की मंजूर नहीं।
दौलत पर नहीं करते नाज
ना शोहरत का दंभ भरते हैं
लेकर खड्ग हाथों में अपने
शत्रु संहार हम करते हैं।।
जब देश पर संकट आता है
भुजाओं मे दम हम भरते हैं
लेकर रक्त का ज्वार सीने में
युद्ध शंखनाद हम करते हैं।
हुंकार भरे जब रण में राणा
शत्रु का मन कांप उठे
एक खड्ग से काटे नर मुंड
शत्रु फिर रण में विलाप करे।।
मातृ भूमि में मर मिट जाएं
देशभक्त वो कहलाते हैं
केसरिया ध्वज से तख्त हिलाएं
वो असली राजपूत कहलाते हैं।।।