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Yog Raj Sharma

Abstract

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Yog Raj Sharma

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राज ऐ चेहरा

राज ऐ चेहरा

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नींद में सोये ख़्वाब तो देख,

आंखें खुल गई हैं और तू जाने का नाम नहीं लेती है,

जिद्द की तस्वीर नग्न आंखों से बन जाती है

कलम चले किस कागज पर, ढूंढे क्या लिखने को

हजारों हज का हिसाब नहीं

जब भी लिखूं,यह कलम तेरा मुस्कुराता पग-पग लिख जाती है।


पहचान इस साये को शान से

शहर में भी बन-ठन के चली है

दुख नहीं भाता राही को

शाही जिंदगी संवर रही है

न रुकने को बोला है

कलम स्याही को।


सुन वही मधुर वाणी

बना सकू न गर तुझे रानी

राज काज हुआ है अंत

सुनाता राज ऐ अंजानी कहानी

दर-दर की खाई ठोकरें

घाट-घाट का पिया है पानी।


जग की बेपरवाही देख

इच्छा जाहिर करें तो जानू

याद आए इरादा तो उदय भानु

क्यों कर रहे जुबान-जुबानी

जो मन में उछल रहा, दे-दो कुर्बानी।


सच कहता पथ भृमित नहीं रही।


चंचल ,सुशील मधुर रस हाला

शीतल पवन आ रही हो

चढ़ जाए ,बिन पिये प्याला

न सोचूं तो भी खिल जाता है

पथ पर अगर रहूँ अकेला

तेरे कदमों की आहट सुन कर

चाँद को निहारता

इंतजार नहीं तमिर का

आंखें खुल गयी हैं

सूरजमुखी सा राज ऐ चेहरा सामने आ जाता है।



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