राही
राही
राही मन की राह नहीं है आसान
जितना तू बढ़ेगा उतना तू भटकेगा।
न मंजिल मिलेगी न मिलेगा सुकून
आगे बढ़ने का नित रहेगा जुनून।
अस्थिर मन राह भी दुष्कर
उलझनों के भँवर कहीं न डगर।
हाथ पैर मारोगे, निकल न पाओगे
प्रयास विफल बेचैन हो जाओगे।
मन को थोड़ा स्थिर बनाओ
एकाग्रता से फिर बढ़ते जाओ।
राह तुम्हारी सुगम होगी
भटकन सब दूर होगी।
आशा की किरन तब फैलेगी
मंजिल फिर कदम चूमेगी।
राही तुम्हारी विजय होगी
खुशियाँ नित नई होंगी।