राह
राह
कहते- कहते साथ चलते रहे
हम हमेशा की तरह
खामोशी पकड़ सुनते रहे
न यह जिद थी तेरी
न यह जिद थी मेरी
बस पगडंडियों का सफ़र यूं ही काटते रहे
कभी छाॅंव मिली तो बाॅंट ली
धूप में दोनों तपते रहे
देखो ! यह जो पगडंडी है
फिसलन से भरी हुई है
अब अंतिम छोर पर
तुम किधर हुए
हम किधर गए|