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DREAM ART

Tragedy

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DREAM ART

Tragedy

"पढ़ना चाहे एकलव्य "

"पढ़ना चाहे एकलव्य "

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राज गुरु हुए द्रोण से,किया शिष्यों से हेज।

पढ़ना चाहे एकलव्य, खूब किया परहेज।

खूब किया परहेज, महारथ तब खूब लजा।

हुनर से कुशल बना, मनोरथ की हुई सजा।

कह "जय"करो ख्याल, मेहनत से पहन ताज।

आज भी असंख्य गुरु,चला रहे हैं छद्म राज।



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