प्यार का मौसम
प्यार का मौसम
प्यार की पतझड़ का आलम क्या कहें
मुसलसल बहते इश्क के मौसम मुरझा गए !
तिश्नगी तेरी रहेगी इस ज़िस्त में छूटती साँस तक।
तेरे छुए हर पहलुओं का इंतख़ाब किया हमने,
चंद लम्हें ऐसे गोया हवा गुजर गयी रेत के टीले
ढह गए ख़ुमार का गुब्बार उतरते..!
नाचती है यादें दरिया की मौजों से
ताल मिलाते इस मंज़र का शोर सूने
साहिल पर दूर-दूर तक फैला है..!
नज़रें गाड़े हम सदियों से खड़े हैं,
हर आहट पे हमारा चौंकना
हँसी उड़ाते बादलों के झुरमुट नोच रहे हैं !
कोई नहीं है फिर भी है मुझको
क्या जाने किसका इंतज़ार,
दिल क्यूँ बुलाए किसी को बार-बार !
सूखी शाखों का हरा होना तय है मौसम बदलते,
उपहास की आँधी सहते कहो कब तक
उम्मीदों का दामन थामे बाट जोती खड़ी रहूँ !
क्या कभी आओगे तुम ?