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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Romance

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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Romance

प्यार का अहसास

प्यार का अहसास

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अब तो अकेला रहना अच्छा लगता है

तन्हाईयों से बातें करना सच्चा लगता है

जब से हुई है साखी तुमसे ये मुलाक़ातें

तुझसे मिले बगैर अब नहीं कटती है रातें

तुमसे मिलने पर ही ये दिल मेरा लगता है


हर पल तेरी तस्वीर को देखते ही रहना

तेरे ख्यालों में खोये रहना अच्छा लगता है

अब तो अकेले रहना अच्छा लगता है

तेरे अलावा सब चेहरे बदरंग लगते है

तेरा ही चेहरा हमे बस रँगीन लगता है


तू कब ऑनलाइन आयेगी,

हर पल इंतज़ार ये रहता है,

हर पल तेरा इंतज़ार करना अच्छा

लगता है

दीपक की लौ की भाँति, दिल जलता है

तेरी यादों से ये दिल मेरा सुलगता रहता है

तुझे याद करना दिल को इबादत सा

लगता है

अब तो अकेला रहना अच्छा लगता है

लोग कहते है, साखी तू पागल हो गया है

उनके शब्दों से मोह

ब्ब्त शब्द अपना

सा लगता है


दोस्त कहते है मेरे, तुझे प्यार हो गया है,

यारा

प्यार के सारे लक्षणों से तू बेचैन सा

लगता है

अब तो अकेला रहना अच्छा लगता है

रब ही जाने

कब मिलेंगे 

दो दिल अनजाने

उनको याद करते करते,

अब तो एक पल भी सौ साल सा लगता है


जल्दी से उनसे मुझे मिला दे मेरे कान्हा,

उनके बगैर ये विजय बहुत अधूरा सा

लगता है

अब तो अकेला रहना अच्छा लगता है

बस वो सदा दिल के पिंजरे में ही कैद

रह जाये

इसके बाद तो मरना भी हमे अच्छा

लगता है

मिलन की प्यास अब तो पूरी कर देना 

हे माधव, कृष्ण मुरारी

उनकी छवि देखे बिना मोहन

हमे मोक्ष भी अब तो अच्छा नहीं

लगता है

अब तो अकेले रहना अच्छा लगता है



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