पूंज
पूंज
लिखते हैं हम
अपने अंतस मन के खोह में दबे हुए अनगिनत भावनाओं को
तो कभी दूसरों के मन की अनकही पीड़ा को
कभी कभी अनुभूति जन्य उल्लास को भी और कभी ....
बिताए हुए हसीन पलों को
कुछ बिसराए हुए लम्हों को
कुछ आधे अधूरे से कच्चे एहसास को भी
जिसे बेख्याली में बांध लिया था दुपट्टे के एक कोर से
जो अब तलक न छूटा दूसरे छोर से .......!
लिखते हैं हम
अपने अंतस मन के खोह में पल्लवित पुष्पित उस पूंज को
जो किस्तों में मिलता रहा उम्र भर हमें
तृप्त करता रहा , दामन भरता रहा हौले-हौले ....!