पुरुषार्थ
पुरुषार्थ
भाग्य न कर्मो का बस पुरुषार्थ होना चाहिए
धैर्य साहस लक्ष्य का शब्दार्थ होना चाहिए।
कर्म भूमि वीरों के पर्याय हेतु ही बनी
कर्म सेवा जव भी हो निस्वार्थ होना चाहिए।
ये न सोचो क्या किया क्या हमने पाया है
लोक हित कोई कृत्य हो परमार्थ होना चाहिए।
हो समर सघर्ष निज साहस न छोड़ो आस तुम
प्रेम करुणा और दया न व्यर्थ होना चाहिए।
निज श्वांस की हर आस ये उपकार हेतु ही रहे
शुल पथ हो मगर नहीं स्वार्थ होना चाहिए !