पुरुष..
पुरुष..
क्यों पुरुष की पीड़ा को ,उसके फर्ज का नाम दिया जाता है !
क्यों पुरुषों को रोने नहीं दिया जाता है!
क्यों कहते हैं की पुरुष सख्त होते हैं
क्या पुरुषों के दो दो मस्तक होते हैं!
क्यों कहते है पुरुष घर नहीं बनाते है,
क्या दूर रहकर आप ईश्वर नहीं सजाते है!
जहां ने पुरुषों को एकतरफ ला दिया है,
जिसको इज़्ज़त दी उसी ने खा लिया है!
पुरुषों ने प्रेम का मतलब समझाया है,
बेशक़ कोई दूर हो,नाराज़ हो,खामोश हो,
पुरुषों ने ही पहले मसला सुलझाया है!
अगर जहाँ में ,पुरूष कौरव हो सकते है,
वही सती अनुसुइया का गौरव हो सकते हैं!