पुराना टीवी:यादों का पिटारा
पुराना टीवी:यादों का पिटारा
जब भी देखते थे वो मोटा बड़ा सा,पुराना टीवी माँ के कमरे में
हम भाई-बहन बस कुड़ जाते थे।
टीवी के कानों को उमेठते-उमेठते हम चिढ़ जाते थे।
हमेशा माँ से इस टीवी को हटाने की गुहार लगाते थे,
कि हटाओ यह डिब्बा,अब नए जमाने का स्मार्ट टीवी लाते हैं।
उसके सुंदर -सुडौल मॉडल से घर की शान बढ़ाते हैं।
माँ कहती,"नहीं बच्चों इस पुराने टीवी से मेरी सैकड़ों खट्टी-मीठी यादें जुड़ी हैं।
इसमें मेरे माता-पिता की यादें बसी हैं।
जानते हो यह टीवी मेरी शादी में आया था।
न न तुम्हारे पापा ने दहेज नहीं माँगा था,
बल्कि मेरे पिताजी ने मुझे बड़े शौक से दिलाया था।
मुझे टीवी पर चित्रहार देखना बहुत भाता था।
उसी के गानों को सुनकर मेरा मन गुनगुनाता था।
तो बस पिताजी बोले,"बिटिया की शादी में कुछ दें या न दें,एक टीवी जरूर जाएगा।"
जो ससुराल में मेरी गुड़िया का दिल बहलाएगा।
तो अब भी मुझे यही बारह चैनल और बिना रिमोट का टीवी ही भाता है।
इसमें मुझे अपने पिताजी को मुस्कुराता चेहरा नजर आता है।
इसे छूने पर मेरा दिल बच्चा बनकर उन्हीं पुरानी यादों में डूब जाता है।"
अब जब हम बच्चे समझदार हो गए,तब समझ आया कि माँ और उस पुराने टीवी का गहरा नाता है।
यह माँ के लिए सिर्फ़ एक चीज नहीं बल्कि उनके जीवन में एक संगी-साथी,उनका भगिनी-भ्राता है।
जिसका सानिध्य माँ को उनके बचपन में ले जाता है
और उन्हें उनके पिता का प्यार जतलाता है।