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Kusum Joshi

Abstract

4.5  

Kusum Joshi

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पुनः बहा दो गंगा शंकर

पुनः बहा दो गंगा शंकर

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हे शिव शंकर हे नीलकंठ,

कैलाशपति हे त्रिपुरारी,

हे दयानिधान हे महादेव,

कंठ नाग और डमरूधारी,


कृपा तुम्हारी हो जाए,

धरती से दुःख संताप हरो,

पुनः बहा दो गंगा शंकर,

पाप हरो कल्याण करो|


आरम्भ जगत का तुमसे ही,

है अंत तुम्हारी परछाई,

त्रिलोचन है नाम तुम्हारा,

माथे तुमने भस्म रमायी,


नेत्र तीसरा खोल प्रभु अब,

पावन हर पाषाण करो,

पुनः बहा दो गंगा शंकर,

पाप हरो कल्याण करो|


सत्य के रक्षक तुम हो फिर भी,

सत्य बदी से हार रहा,

अच्छाई छिप गयी कहीं पर,

तिमिर दिशाएं बाँध रहा,


विष घृणा का फ़ैल रहा,

अब फिर से तुम विषपान करो,

पुनः बहा दो गंगा शंकर,

पाप हरो कल्याण करो|


नटराज में छवि तुम्हारी,

तुमसे सुर संगीत बना,

तांडव करते शिव ने ही,

कई प्रलय रचे तब जीव बना,


धरती पर कलियुग हावी है,

प्रभु नवयुग का संचार करो,

पुनः बहा दो गंगा शंकर,

पाप हरो कल्याण करो!!


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