पत्थरों का शहर
पत्थरों का शहर
पत्थरों के शहर में ढूंढने जान चले,
हम हैवानो की बस्ती में ढूंढने इंसान चले।
हम से अब तो वो भी सवाल करता है,
क्यों छोड़ के जमीन को भरने उड़ान चले !
रखा हुआ है सामने भरकर मीठा शहद,
फिर क्यों पीने के लिए हम ज़हर थाम चले !
जहां में सब ही अपने अपने मतलब की बात करते हैं,
जान कर भी हम रिश्तों को क्यों करने परवान चढ़े !
फरियाद इस गूँगे बहरों के शहर में किस से करे,
हम अपनी आवाज को, अलफ दीवारों से क्यों मांद चले।