पत्र
पत्र
मेरी खुशी के लिए तरपती है तेरी आँखें,
मुझे देखने को झुलसता है तेरा दिल,
मुझे भेज उस जंग के मैदान में..
मेरे एक पत्र के लिए बेचैन है तेरा मन,
पर तू ही बता ?
कैसे भेज दूँ तुझे वो पत्र
जिसमें मेरे आने की उम्मीद ही है बस,
मेरे खुश होने का झूठा विश्वास ही है बस,
मेरे ज़िंदा होने की आस ही है बस,
तू ही बता कैसे भेज दूँ तुझे वो पत्र ?
लिखता जरूर हूँ..
पर भेजने से दिल घबराता है,
तुझसे दूर रहने को भी दिल नहीं चाहता है,
तेरे हाथों का स्वाद बहुत याद आता है,
तेरे गोदी में सर रखकर सोने को दिल चाहता है,
पर तू ही बता इतने गम छिपाकर
कैसे भेज दू तुझे वो पत्र ?
जिसे पढ़ कर तू अनकही बातें समझ जाती हैं,
जिसकी लिखावट देख के ही तू घबरा जाती हैं,
बता तू ही कैसे भेज दू तुझे वो पत्र !
