पत्र पिता को
पत्र पिता को
पापा
आज फिर जंग छिड़ने का अंदेशा है
नहीं मालूम कब निकलना पड़ सकता
सोचा जाते जाते बातें कर लूँ
क्या पता कल न लिख सकूँ ।
बहुत खुशकिस्मत हूँ
जो आपका लाल हूँ
आपके दिल का टुकड़ा
गुले गुलजार हूँ।
जरूर आपके खून में
कुछ जनून होगा
जो अकेले बेटे को
सेना में भेजा होगा ।
मुझ से ज्यादा
आप महान हो पापा
जिनका नूरे नज़र
देश पर कुर्बान हो ।
आज के युग में
ऐसे पापा हो नहीं सकते
बहनों के इकलौते भाई को
जो सरहद पर भेज सकते ।
भारत माँ से पहले
कर्जदार हूँ आपका
फौलादी जिगर का
सशक्त वज्र हूँ आपका।
कसम है आपक
े खून की
न कभी सर झुकने दूँगा
गर्व से आप कहना
मैं आपका लाल रहूँगा ।
राज की बात आज कह दूँ
मेरी बहनें भी नहीं किसी से कम
लड़कों की तो छोड़ो
उनसे ज्यादा है उनमें दम।
वादा करता हूँ मैं आपसे पापा
न हार कर आऊँगा
दुश्मन को तलवे चटा
तिरंगा लहराऊँगा।
माँ बनकर आपने पाला
आप ने किया भारत माँ के हवाले
माँ भारती पर मुझ से लाखों कुर्बान।
ऊँची रहेगी आपकी व देश की शान।
गर मैं लौट कर न आया
वादा करो न आँसू बहाओगे
तिरंगा मुझ पर डाल कर
जय हिन्द का नारा लगाओगे।
भावुकता में बह गया
शेर का बेटा हूँ पापा
शत्रु न मुझे छूँ पाएगा
तिरंगा गाड़ कर आऊँगा।