पत्र लेखन कला
पत्र लेखन कला


पत्र लेखन कलाएं ढूंढो ,
कहीं किसी की निशानियों में।
अगर सहेजी नहीं गई ये ,
मिलेंगी किस्से कहानियों में।
नहीं पत्र अब मोबाइल हैं,
रही कलम ना दवात लोगों।
स्याही वाले पेन कहाँ अब,
लिपि कहाँ वो,वो हाथ लोगों।
नहीं सीख के अब खत कोई,
बार बार पढ़ सुकूंन पाते।
लिखा समझ ना पाते गर तो ,
पढ़े लिखों से खत पढ़वाते।
कितना आता मजा हृदय से,
दबा किसी खत को सहलाते।
चूम चूम कर उसकी लिखतम,
बिगाड़ देते,तब सुख पाते।
समय कहाँ अब सोच समझ का,
जल्दी में हर लम्हा रहता।
अधकचरी भाषा में अपने,
संदेशों का दरिया बहता।
हम लिखना ही भूल गए खत,
संबोधन सोचे ना मिलते।
आखिर में क्या लिखें,न जानें,
बिन बोए क्या गुलाब खिलते।
नहीं छिपाए जाते अब खत,
नहीं जलाया उनको जाता।
खत पहुंचाने कहां कबूतर,
कभी डाकिया बनकर आता।
शब्द डाकिया सुन लो कुछ दिन
बिना डाक क्या करे डाकिया।
मय की उपलब्धि हो तब तो,
लेकर आए जाम साकिया।
इंतजार अब खत्म हो गया,
चट मंगनी पट ब्याह रचाएं।
इधर दबाया बटन उधर टन,
घंटी बोली गीत सुनां।
फोन उठाया नजर घुमाई,
और डिलीट मेसेज हो गए।
"अनंत" खतरा कौन मोल ले,
घोड़े बेचे और सो गए।