पतझड़ में औकात
पतझड़ में औकात
जीवन का हर दांव
जीतना चाहता हूं
कभी जीतता हूं
तो कभी हार जाता हूं
जीतने से खुशी मिलती है
हारने से औकात पता चलती है
जीतकर अहम से भर जाता हूं
हार कर फिर
प्रयासरत हो जाता हूं।
जीत-हार की जंग में
ऐसे खो जाता हूं।
मानव होकर भी
मानवता भूल जाता हूं
जीतकर अपूर्ण होते हुए भी
पूर्ण हो जाता हूं
हारने से वास्तविक स्तर का
एहसास पाता हूं।
मैं जीत कर पानी के
बुलबुले सा फूल जाता हूं।
हार कर पानी होने का
आभास पाता हूं
जीवन की वास्तविकता तो हार में है।
जीत के तो काल्पनिक हो जाता हूं
मन को शांति मिलना
विजय का प्रतीक है।
अशांत मन से
समाज को दिखावा कहां की जीत है?