पथिक के अश्रु
पथिक के अश्रु
अश्रु बिन बोले बहुत कुछ कह जाते हैं
ये कभी सुख में बहने लगते हैं
ये कभी ग़म में भी बाहर आ जाते हैं
अश्रु न बहे तो पत्थर बन जाते हैं
एकांत में बैठकर सोचो कभी समय लेकर
क्या कर रहे हो अपने जीवन को साथ लेकर
क्या चाहिए था तुमको इस एक जीवन के अंदर
अपना पराया कुछ भी नहीं रहेगा चिरंतर
ये दुनिया किसी की नहीं बनी
इसकी सिकंदर और अशोक महान से भी थी ठनी
तुम सोचते हो तुम से बनेगी
कभी न कभी तुमसे भी ठनेगी
रोओगे तुम अश्रु बहाओगे
समय समय पर हंसते भी जाओगे
जिंदगी के रास्ते पर यूं ही चलते जाओगे
तुम तो पथिक हो कहां रूक पाओगे।