पता नही
पता नही
पता नही उसका कब किसी
मोड़ पर जाना था,
वक्त गुजरता चला गया हर
मोड़ पर जिसका था।
समय के साथ फिर समय
स्थिर नहीं रहा,
जाने अनजाने हर समय
का कब मिला था।
बढ़ता गया कारवाँ उसका
हर मोड़ पर,
जब क़लम और स्याह का
निभाया साथ था।
