STORYMIRROR

Rajesh Singh

Classics

3.8  

Rajesh Singh

Classics

पर्यावरण एवं हमारा समाज

पर्यावरण एवं हमारा समाज

1 min
74


छायी अंधियारी ज्यों दिन में ही रात है

धुंधली तस्वीर और लाल हुयी आंख है

तेज चलती स्वांसा और गले मे खरास है

दिल धड़के जोर जोर मन भी उदास है


कानन उजाड़ दिए मिलती नही घास है

जगह जगह मिट्टी में प्लास्टिक का वास है

कारखानों के धुंवा से भरता आकाश है

कतारों में गाड़ियों की संख्या बेहिसाब है


शहर भर की गंदगी का नदियों में बास है

पोखर, तालाब, कूप सूखत सब जात है

करनी का भोग अब तो सामने दिखात है

प्रदूषण का 'राज' आज करत विनाश है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics