प्रतिरूप
प्रतिरूप
यात्रा करनी है इस अनंत की
मां साथ तुम्हारा मांगा है
है दया तुम्हारी हृदय में मेरे
प्रेम तुम्हारा जागा है
रूप लिए इक प्यारा सा
तुम मिलने को मुझसे आईं थीं
दही जलेबी और प्रसाद
खुश हो कर भोग लगाईं थीं
वैसे तो मुझको देने में
ना की तुम ने कमताई है
मैंने घर आ जाने की अब
तुमसे अरदास लगाई है
नतमस्तक हूं, है कृपा तुम्हारी
अवरोध सभी मैं फलांग रहा
प्रतिरूप तुम्हारा अपने आंगन में
माता तुमसे मैं मांग रहा
