STORYMIRROR

अंकित शर्मा (आज़ाद)

Abstract Others Children

4  

अंकित शर्मा (आज़ाद)

Abstract Others Children

प्रतिरूप

प्रतिरूप

1 min
300

यात्रा करनी है इस अनंत की

मां साथ तुम्हारा मांगा है

है दया तुम्हारी हृदय में मेरे

प्रेम तुम्हारा जागा है


रूप लिए इक प्यारा सा

तुम मिलने को मुझसे आईं थीं

दही जलेबी और प्रसाद

खुश हो कर भोग लगाईं थीं


वैसे तो मुझको देने में

ना की तुम ने कमताई है

मैंने घर आ जाने की अब 

तुमसे अरदास लगाई है


नतमस्तक हूं, है कृपा तुम्हारी

अवरोध सभी मैं फलांग रहा

प्रतिरूप तुम्हारा अपने आंगन में

माता तुमसे मैं मांग रहा


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract