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Pt. sanjay kumar shukla

Abstract

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Pt. sanjay kumar shukla

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प्रतीक्षा

प्रतीक्षा

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(१) छोड़कर अपनी बच्चों को,

 चिड़िया अपनी घोसले में ।

निकली वह दाने चुनने को,

घर लौटने में बड़ी विलंब;

पर उम्मीद टिकी है हौसले में ।।


(२) प्रतीक्षा कर रहे हैं चूजे,

अपनी मां के लौटने की ।

भूख से अकुलाए हैं,

सादर नमन तुमको, हे ईश्वर !

मेरी मां की लौटने की ।।


       ( ख )

(३) सावन का महीना,

ताक रहा था आसमान को मयूर ।

मेघ रूपी प्रियतमा की प्रतीक्षा में,

बीत गऐ कई बरस हुजूर ।।


(४) भीगे मेरे नैना अश्रु से,

इसे सुखा दे अपनी वर्षा से ।

प्रतीक्षा कर रही हूं कब से,

हे गगन कह दो मेरी मन 

की बात उस वर्षा से ।।


(५) न्योछावर कर दो मुझ पर अपना प्रेम,

हे बरखा! अपने जल से भिगोकर ।

अब ना प्रतीक्षा हो पाएगी,

तेरी प्रेम विरह का ढोकर ।।


(६) कर रही प्रतीक्षा हूं,

बांधकर पैरों में घुंघरू ।

मैं नाचूंगी तेरे प्यार में,

जब हो जाए हम रूबरू ।।


(७) तेरी सिर-सिर सिर-सिर गीतों में, 

मेरी पांव उछल-उछल के थिरकेंगे ।

दूर खड़े हुए लोग सिर्फ,

हम दोनों के प्रेम लीला को देखेंगे ।।


(८) प्रतीक्षा उस पल का मुझे,

सता रहा है बार-बार ।

आजा तू काली चुनरिया ओढ़ के,

ला चल बूंदों की वधु हार ।।


        ( ग )

(९) जो किया प्रतीक्षा पल-पल का हो,

उसी का हुआ जग में कल्याण ।

वही आज धनी हुआ है,

और वही ध्वनियों का कर रहे कल्याण ।।


(१०) एक पुरानी है कहावत,

जो सेवा करे सो मेवा खाये ।

करो कड़ी परिश्रम लक्ष्य के प्रति,

यही तुम्हारे लिए सुख संपत्ति लाये ।।


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