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Tragedy

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पृथ्वी पर विशेष कविता

पृथ्वी पर विशेष कविता

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प्रकृति हमारी बड़ी निराली।

इससे जुड़ी है ये दुनिया हमारी।।

प्रकृति से ही है धरा निराली।

प्रकृति से ही फैली है हरियाली।।

वृक्ष प्रकृति का है शृंगार।

इनको क्यो काट रहा है इंसान।।

नष्ट इसे करके अपने ही पाँव पर।

कुल्हाड़ी क्यो मार रहा है इंसान।।

प्रकृति की गोद मे जन्म लिया है।

फिर इसको क्यो उजाड़ना चाहता है।।

स्वार्थ साधने के बाद मुंह फेर लेना।

क्या मानव यही तेरी मानवता है।।

प्रकृति दात्री है जिसने हमे सर्वस्व दिया।

पर मानव उसे दासी क्यो समझता है।।

क्या मानव इतना स्वार्थी है कि।

अपनी माँ को ही उजाड़ना चाहता है।।


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