परमात्म अनुभूति की विधि
परमात्म अनुभूति की विधि
मिथ्या, असत्य और व्यर्थ का, तू कर ले पूरा त्याग
अज्ञान नींद में क्यों सोया है, तू जाग रे बन्धु जाग
अपनी विकृत मनोदृष्टि का, तू करता चल सुधार
पापकर्म से मुक्त होने का, सिर्फ एक यही आधार
दिखता जो नयनों से तुझे, झूठा ही उसको जान
तन हो जाएगा राख तेरा, कर ले खुद से पहचान
चिन्तन को सुधार जानकर, सत्त असत्त का भेद
परम शान्ति अनुभव होगी, मिट जाएंगे सब खेद
स्वयं को जानने का जितना, चिन्तन तू चलाएगा
सत्य से होगा मेल तेरा, असत्य सब मिट जाएगा
स्वयं को ही यदि भूल गया, तो होगी तुझे हैरानी
झूठ के जाल में फंसेगा, बढ़ती जाएगी परेशानी
परम गुरु की याद में बैठकर, मार्गदर्शन तू पाएगा
आत्म उन्नति का सहज मार्ग, वो तुझे बतलाएगा
सावधान होकर अब तू, निज का चिन्तन कर ले
माया मुक्त होकर तू, आनन्द के सागर में उतर ले
अब और नहीं बढ़ाना, दुनिया का कोई कारोबार
काम क्रोध के संग संग, ये लोभ भी बड़ा विकार
आत्म चिन्तन का अभ्यास, निरन्तर बढ़ाता चल
साधारण नर से ख़ुद को, नारायण तू बनाता चल
परम सद्गुरु की महिमा, तू मन ही मन दोहराना
मिथ्या जग को भूलने का, अभ्यास बढ़ाते जाना
सदा स्वयं से प्रश्न पूछना, तू कौन कहां से आया
मायावी दुनिया के वन में, क्या खोया क्या पाया
अपने मन के नयनों में, सद्गुरु की छवि बसाकर
दिखा दे उसकी पसन्द का, अपना चरित्र बनाकर
मन को वश में करके जब, असत्य पूरा मिटाएगा
आत्म दर्शन होगा तुझे, परमात्मा अनुभूति पाएगा।