प्रकृति, सुर,और संगीत
प्रकृति, सुर,और संगीत
वायुमंडल की तरंगों में
रचता-बसता है संगीत
तभी तो वाद्य यंत्रों की
ध्वनि से बजता है संगीत।
सरगम के सुरों से बन कर
कोई गीत, गुनगुनाता है
जब कोई मीत तब सफ़र
का साथी बन जाता है संगीत
होठों पर गीत, प्रकृति से प्रीत
कभी ध्यान से सुनना
वायु में वीणा के तारों
की सुमधुर झंकार
होती है, वृक्षों की डालियों पर
महफ़िल सजती है।
पक्षियों की अंत्राक्षी होती है
कव्वाली होती है, मैंने सुना है
कोयल की मीठी बोली तो मन ही
मोह लेती है
जब सावन की झडी लगती है
वर्षा की बूंदों से भी संगीत बजता है।
आसमां में जब बादल घुमड़ता है
तब आसमां भी रोता है
धरती को तपता देख उसे
अपने अश्रुओं से ठंडक देता देता
तब मेघ मल्हार का राग बजता है।
धरती तब समृद्ध होती है
वर्षा के जल से धरती का
अभिषेक आसमां करता है
हरी घास के कालीन पर
पर विहार होता है
प्रकृति की सुंदरता पर
हर कोई मोहित होता है।
वृक्षों की डालियां
भी समीर के रिदम पर
नृत्य करती हैं
वृक्षों से टकराकर वायु विहार करते हुए
जब सांय-,सांय की आवाज करती है
तब प्रकृति भी गाती है।
गुनगुनाती है
वायु से जो ध्वनि संगीत के
रूप में निकलती है
प्रकृति को आनंदित करती है,
प्रफुल्लित करती है।
