प्रकृति की गोद में ...
प्रकृति की गोद में ...


आकाश में एक हलचल है,
बेधड़क बहती ये हवाएं हैं,
नारंगी रंग बिखेरते ये बादल,
साँवली सी चुनरिया ओढ़े ये वादियाँ,
जाने किसको ढूंढ रहे हैं?
खुले गगन में मंडराते ये पखेरू,
ऊँचे पहाड़ो के पथरीले रास्तों पर,
तन कर खड़े ये नीलगिरि के वृक्ष,
गुज़रती हुई ठंडी हवाएं,
खेल रही हैं उन टहनियों से,
सरसराते पत्तों की आवाज़,
छेड़ रही है इस सन्नाटे को,
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धुंद से घिरी इन वादियों में,
दबे पाओं आती वो साँझ,
साँझ के आते ही वादियों में,
पखेरू लौट आये घरौंदों में,
रात के अँधेरे में नज़र आती हैं,
दूर जलती हुई कुछ चिंगारियां,
जैसे घने अँधेरे में,
जुगनू लेते हैं अंगड़ाइयाँ,
धरा के आँचल में न जाने,
कितने हैं ऐसे स्थान जाने-पहचाने,
प्रकृति की इस सुन्दर खोज में ही,
भटक रहे है कितने हमराही |