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Rekha Mohan

Inspirational

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Rekha Mohan

Inspirational

प्रकृति-गीत

प्रकृति-गीत

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सहेज लो इस प्रकृति को कहीं गुम ना हो जाए

हरी-भरी छटा, ठंडी हवा और अमृत सा जल पाए

कर लो अब थोड़ा सा मन प्रकृति को बचाने का

मन में ठान ले हर जीव-जंतु संग निभाना हो जाए.

“रेखा” इसी से मानवता भी बची पाई बन सुरक्षित

इसी सोच को हर जन का मन से अपनाना हो जाए.


लाली है, हरियाली है,

रूप बहारों वाली यह प्रकृति,

मुझ को जग से प्यारी है।

हरे-भरे वन उपवन,

बहती झील, नदिया,

मन को करती है मन मोहित।

प्रकृति फल, फूल, जल, हवा,

सब कुछ न्योछावर करती,

ऐसे जैसे माँ हो हमारी।


हर पल रंग बदल कर मन बहलाती,

ठंडी पवन चला कर हमे सुलाती,

बेचैन होती है तो उग्र हो जाती।

कहीं सूखा ले आती, तो कहीं बाढ़,

कभी सुनामी, तो कभी भूकंप ले आती,

इस तरह अपनी नाराजगी जताती।


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