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Ashish Tiwari

Drama

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Ashish Tiwari

Drama

परिवर्तित ख़्वाब

परिवर्तित ख़्वाब

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मैं भाई हुआ करता था किसी का, किसी का यार था...

किसी की उलझी ज़ुल्फ़ों में, मैं किसी का प्यार था...


एक पल में नाता सबने तोड़ के, ख़ुद की नज़रों से गिरा दिया...

एक लोहे का ख़ंजर दिया मुझे, और मुझको हिला दिया...


वो सफ़ेद रंग का कुर्ता, जो मुझे सबसे अज़ीज़ था...

उस पर भी मज़हब के नाम की, स्याही गिरा दिया..


जिस दाढ़ी को रखके, बड़े फ़क़्र सा घूमता रहा था मैं...

उसको भी मेरी क़ौम का, दिखावा बता दिया गया...


हर तरफ़ की अफ़रा-तफ़री से, डर के भागने लगा था मैं...

किसी कोने, किसी कूचे में, ख़ुद को छिपाने लगा था मैं...


एकाएक बस आँख खुली, और होश आया तभी...

हाँथों में किताब ग़ालिब की, और चेहरे पे बेबसी...


उस पल जैसे उस किताब ने, ख़ुद बोला था मुझे...

अच्छा हुआ मैं वक़्त से, पहले ही हो लिया राब्ता...


वरना कोई हिन्दू-मुस्लिम के दंगों में, मुझको भी मारता...

तब चैन की साँस ली, और अपने सपने को भूलने लगा....


जिस रात ख़्वाब में 'आशीष' से 'आशिफ' बना था मैं...


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