परिवरिश ऐसी हो कि
परिवरिश ऐसी हो कि
यूँ तो बच्चों के बीच जब कभी,
पैतृक संपत्ति का बंटवारा होता है !
माता पिता का हृदय ,
एकदम छलनी सा हो जाता है !
उनकी परवरिश में ऐसा ,
संस्कारों का अंतर कैसे रह जाता है!
कि उनकी संतति के लिए ,
इंसा से ज़्यादा धन का महत्व हो जाता है!
बदलते समय का ये दौर ,
ना जाने कैसा मंजर दिखलाता है !
बड़े बुजुर्ग को अकेला छोड़कर ,
कैसे कोई मानसिक शान्ति पाता है !