परिवार हमारा
परिवार हमारा
एक थान में पूरे घर के कपडे़ सिल जाते थे
सुबह को रूठे अपने
शाम तक मिल जाते थे।
मां बनाती थी चूल्हे पर
गर्म - गर्म रोटी
उस रोटी की मिठास
सबसे मीठी होती।
बैठकर आंगन में सब
मिल बांटकर खाते थे
हंसते - गुनगुनाते थे
ठहाके लगाते थे।
बड़के भैया शाम को
हमको पढा़ते थे
शैतानियां करने पर
हमको मुर्गा बनाते थे।
आंख मिचौली पकडा़ - पकडी़
खेल बडे़ अलबेले थे
घर के बाहर भाई -बहन
मिलकर जो खेले थे।
रात को छत पर सब
अपना बिस्तर लगाते थे
पूरे दिन की बातें
जी भर बतियाते थे।
दादी हमको परियों की
दुनिया में ले जाती थी
हाथ पकड़कर हमको
निंदिया रानी से मिलाती थी।
सुन्दर सा परिवार हमारा
जिसमें जीवन होता था
हाथ पकड़ सब मुस्काते
कोई न तन्हा रोता था।
ऐ वक्त मुझे वापस देदे
गुजरे हुये वो प्यारे लम्हे
पलकों में समेटूं मैं उनको
वो ताउम्र मेरे दिल में रहें।
खुशियां छोडे़ं ना दामन को
ना लगे किसी की कभी नजर
मुस्काता रहे परिवार मेरा
इतनी विनती सुन लो ईश्वर।