परिंदों का आशियाना
परिंदों का आशियाना
परिंदों का आशियाना तोड़ते,
सबसे बड़ा पाप इंसान करते।
परिंदों को घर से बेघर किया,
प्रकृति को भी नाराज़ करते।
वो परिंदा पेड़ पर रह रहा था,
वो परिवार सहित रह रहा था।
वो भोजन के लिए गया हुआ,
वापिस आया तो पेड़ नहीं था।
पेड़ पर उसका परिवार ना था,
वो दुनिया में तन्हा रह गया था।
वो परिवार को तलाश रहा था,
पर कोई भी ना मिल सका था।
इंसानों ने स्वार्थ के लिए किया,
परिंदे का आशियाना तोड़ा था।
परिंदे का परिवार खो गया था,
परिंदा बेघर अपने घर से हुआ।