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Shubhi Agarwal

Tragedy Others

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Shubhi Agarwal

Tragedy Others

परिंदो की कहानी

परिंदो की कहानी

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पिंजरों में बंद परिंदों को देख

मनुष्य कितना हर्षित होता है

बंद पिंजरों में उड़कर पंछी 

मन ही मन में रोता है 

फड़फड़ा कर पंखों को अपने 

जब थक कर वो गिर जाता है 

तब उसका ह्रदय भी व्याकुल होकर

अपनी दशा पर रोता है

नहीं भाते सोने के पिंजरे उसको

ना ही भाता सोने का दाना

वो तो अपनी आज़ादी के छीन जाने का 

बस गाता रहता दुःख का ही गाना

कैसा मनुष्य है रे तू

जो परिंदों को कैद करता है 

इनकी आज़ादी को छीन कर

खुद चैन की नींद सोता है । 



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