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Mukesh Bissa

Abstract

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Mukesh Bissa

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परीक्षा ऋतु आयी

परीक्षा ऋतु आयी

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परीक्षा ऋतु आई

सर्दी गर्मी वर्षा से

अलग ये कैसी

ऋतु है अब आयी


सबका सर चकराता 

कुछ भी न भाता

कोई और न सुजाता

आता जब ये अजीब मौसम


कर्फ्यू घर मे लगता

न कोई घर से जाता

न ही घर मे आता

सन्नाटा ही छा जाता


पढ़ने का मन नही करता

पर फेल होने से है डरता

एक अलग प्रकार का

माहौल बना ही रहता


दोस्तों और यारों से

अब मिल ही नहीं पाते

मोबाइल और टी वी को

छू तक नहीं पाते


रात में जल्दी से

नींद है आ जाती

भोर सुबह सवेरे

आंख नहीं खुल पाती


हर जगह किताबों का

ढ़ेर सा लगा रहता

कापियों और पेन का

मेल बना ही रहता


अल्प समय मे पाना 

चाहते वर्ष भर का ज्ञान

कोशिश करने पर भी

लगा न पाते ध्यान


शुरू परीक्षा होते ही

बढ़ जाता है मान

घरवाले हमेशा

हो जाते परेशान


पासबुक्स रिफ्रेशर्स की

बाजार में मारा मारी

लगी रहती इनके

 पीछे दुनिया सारी


जो क्लास में साल भर

डांट सर की खाते हैं

खास प्रश्नों के लिए

गुरु के चक्कर लगाते हैं


सुबह शाम भगवान को

हाथ जोड़ने जाते है

परीक्षा कक्ष में भी

रब याद बहुत आते हैं


इस ऋतु के बाद इनका

बदल जाता है रंग

दोस्तों संग अब करते

ये बहुत सारा हुड़दंग


परीक्षा ऋतु का प्रभाव 

इन रिजल्ट ही में आता

कोई सफल हो जाता

कोई असफलता ही पाता।


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