प्रेमिका
प्रेमिका
मनमोहन तुमने पहले मुझ में मोह जगाया ,
फिर प्रेम डगर पर डगमग चलना सिखाया ।
प्रेमी बन प्रेम जाल फैला कर मुझे फँसाया
विरह में तेरे मैने विरहनी सा जीवन बिताया।
मुझ को त्याग अब देते तुम जोग की भिक्षा ,
क्यूँ लेते हो हमारी इतनी बड़ी कड़ी परीक्षा ।
प्रिय तुम मेरे और मैं तुम्हारी प्रेमिका न्यारी ,
बसती थी कभी हृदय तुम्हारे लगती थी प्यारी ।
कह दो इरा से कि प्यार नहीं छलावा था वह ,
उस मनमोहक पल का क्षणिक दिखावा था वह ।